Monday, December 2, 2013
Tuesday, October 22, 2013
Monday, October 21, 2013
SHIKSHAK SASHAKTIKARAN SAMAROH
UPPSMS saltauwa ikai dwara SHIKSHAK SASHAKTIKARAN SAMAROH ka aayojan aaj BRC Saltauwa par kiya gaya...is samaroh mein vishes roop se 2nd semester ke shiksha mitron dwara 4th semester ke shiksha mitron ko safalta poorvak prashikshan poorn karne par uphar sahit vidai di gayi....
isi kram mein BLOCK MEDHA ke antargat 1st aur 3rd semester ki pareeksha mein 1st 2nd aur 3rd sthan paaye shiksha mitron ko BEO dwara puraskar sahit sammanit kiya gaya.
Wednesday, October 16, 2013
सौर ऊर्जा का दोहन
हम
भारतीय सूर्यवंशी हैं यानि की सूरज वर्ष भर हमारे ऊपर अपनी कृपा निछावर
करता रहता है लेकिन उसकी ऊर्जा का दोहन हम से नहीं हो पाया। यूरोप का एक
देश जर्मनी जहाँ सौर दिनों का प्रतिशत बहुत कम है, धुन्ध है; सौर ऊर्जा
उत्पादन में विश्व में अग्रणी बना हुआ है। आज समूचे विश्व में ऊर्जा
मितव्ययी एल ई डी प्रकाश की कागजी धूम मची हुई है, वास्तविकता में वैश्विक
पण में जो सर्वोत्तम एल ई डी हार्डवेयर है वह चाहे जहाँ बनता हो, जर्मनी की
ही राह पकड़ता है।
हमारे यहाँ सोलर हो या एल ई डी परियोजनायें, ग़लीज
भ्रष्टाचार, अदक्षता, समर्पणहीनता और अनुशासनहीनता की भेंट चढ़ रहे हैं।
मार्केटिंग करने वालों का समूचा तंत्र धनपशुओं और सरकारी योजनाओं के दोहन
में लगा हुआ है। ऊर्जा क्षेत्र की इस भावी तकनीकी में हम बहुत तेजी से
पिछड़ते जा रहे हैं। लोग कहते हैं भारत अब फलाना हो रहा है, ढिमकाना हो रहा
है लेकिन मैं कहता हूँ कि यहाँ दौड़ने वाले भी अपनी जमीन खोद रहे हैं। जिस
दिन भारत से वोल्टेज स्टेबिलाइजर, इनवर्टर, सी वी टी आदि का घरेलू बाज़ार
समाप्त हो जायेगा, उस दिन मैं मानूँगा कि भारत दौड़ने लगा है।
विश्वास मानिये सौर दिनों का सम्पूर्ण दोहन भारत की तमाम आर्थिक और उससे
जुड़ी अन्य समस्याओं के उन्मूलन में सक्षम है लेकिन विजन तो हो, कोई विजनरी
तो हो!
हाँ, आप को यह भी बता दूँ कि ऐसी कई जर्मन कंपनियाँ हैं जो
अपने विद्युत उत्पादों का विपणन तो भारत में कर रही हैं लेकिन यहाँ उत्पादन
के कारखाने लगाने में उन्हें कोई बुद्धिमत्ता नहीं दिखती। एक प्रतिनिधि से
बहुत खोद कर पूछने पर पता चला कि उन्हों ने पूरा विश्लेषण किया हुआ है। वे
जो गुणवत्ता वे चाहते हैं उसे कायम रखते हुये बाहर से उत्पाद यहाँ ला कर
बेचने में परता पड़ता है - no compromise in quality! इसे आप जातीय
श्रेष्ठता का नाज़ी दम्भ भले कह लें लेकिन उनकी बात सच तो है ही।
हम
भारतीय आज तक यह भी नहीं सीख पाये कि सॉकेट में तार सीधे नहीं खोंसते, तार
को प्लग में लगा कर यूजना होता है। टोक कर देखिये, एक ही उत्तर मिलेगा -
ओसे का होई? .... की फरक पएन्दा!
Thursday, October 10, 2013
TLM YOJNA BAND
शिक्षा की गारंटी एवं बच्चों के निशुल्क शिक्षण सुविधा मुहैया कराने के लिए केंद्र सरकार व प्रदेश सरकार के संयुक्त तत्वावधान में संचालित टीएलएम योजना के तहत प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय को दी जाने वाली 500 रुपए की धनराशि में रोक लगा दी है। जिससे अब बच्चे पाठ्य पुस्तकों के चित्रों के नमूने गुड़िया, गुड्डे, भालू, बंदर बनाना नहीं सीख पायेंगे।
गौरतलब है कि प्राथमिक शिक्षा की निशुल्क गारंटी के साथ केंद्र सरकार प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों को निशुल्क ड्रेस, किताबें मुहैया कराने के साथ विद्यालय विकास निधि से ब्लैक बोर्ड, कुर्सी, मेज, टाट फंट्टी तथा बच्चों के पीने के पानी के लिए बाल्टी, मग, गिलास खरीदने के लिए धनराशि विद्यालय मेंटीनेंस के साथ विद्यालय की रंगाई पुताई समेत कई और छोटी छोटी मदों की धनराशि उपलब्ध
करा रही है। मगर पिछले सत्र तक प्रत्येकप्राथमिक विद्यालय को शिक्षकों द्वारा पाठ्य पुस्तकों में दिये गये चित्रों के नमूने बनाने के लिए उपलब्ध कराई जा रही टीएलएम मदद की धनराशि में रोक लगा दी गयी है।जिससे अब शिक्षक बच्चों को नमूने बनाकर नहीं दिखा पायेंगे गौरतलब है कि प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सभी योजनाओं में 65 फीसदी धनराशि केंद्र सरकार और 35 फीसदी राज्य सरकार दे रही है।
नि:शुल्क ड्रेस वितरण योजना बस्ती
जागरण संवाददाता, बस्ती: सर्व शिक्षा अभियान के तहत संचालित योजनाओं
के प्रगति को लेकर अपर निदेशक बेसिक आरपी पाल ने गुरुवार को बेसिक
शिक्षाधिकारी कार्यालय में सभी खंड शिक्षाधिकारियों के साथ बैठक की। इसमें
उन्होंने कहा कि निश्शुल्क डेस वितरण योजना की प्रक्रिया को पूरी कराने के
लिए सेंपल करवाया लें। वितरण से पूर्व ड्रेस के गुणवत्ता की पूर्णतया जांच
कर लें। गुणवत्ता में किसी प्रकार की शिकायत मिलने पर संबंधित जिम्मेदारों
के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। छात्रों में मिलने वालों दो सेट डेस में
एक सेट हाफ व एक सेट फुट किया जा सकता है। छात्रवृत्ति योजना को गति देने
के लिए पात्रों की डाटा फीडिंग का कार्य शीघ्र प्रारंभ कराने का निर्देश
दिया। ब्लाक स्तर पर संचालित कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय की देख-रेख
तथा छात्रओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले इसके लिए संबंधित खंड
शिक्षाधिकारी गंभीरता बरते। विद्यालयों पर नामांकन के सापेक्ष छात्रओं की
उपस्थित की जांच की जाए। 1
अब छात्र/छात्राएं करेंगे उपस्थिति पंजिका पर हस्ताक्षर
योजना के तहत कस्तूरबा विद्यालयों में कक्षा 6 से 8 तक की छात्रएं हर दिन
उपस्थिति पंजिका पर हस्ताक्षर बनाएंगी। जबकि परिषदीय प्राथमिक व उच्च
प्राथमिक विद्यालयों में क्रमश: कक्षा-3 से 5 व कक्षा-6 से 8 तक के छात्र
उपस्थिति पंजिका पर हस्ताक्षर करेंगे। यानी अब स्कूलों में छात्र सबसे पहले
हस्ताक्षर बनाएंगे इसके बाद ही पढ़ाई शुरू करेंगे। विभागीय सूत्रों की
माने तो इस अभिनव प्रयोग के पीछे बेसिक शिक्षा विभाग की मंशा विद्यालयों
में अपात्र व फर्जी छात्रों के नामांकन पर अंकुश लगाना है। शासन की पहल पर
एडी बेसिक ने गोरखपुर-बस्ती मंडल के सभी जिला बेसिक शिक्षाधिकारियों को
पत्र भेजकर छात्रों से उपस्थिति पंजिका पर हस्ताक्षर कराने का निर्देश दिया
है।
जनहित गारंटी अधिनियम 2011
ऊर्जा विभाग, लघु उद्योग, श्रम विभाग, आबकारी, माध्यमिक शिक्षा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, महिला कल्याण, पंजीकरण विभाग, लोक निर्माण विभाग, बाट-माप, समाज कल्याण, पशुधन विभाग, आवास एवं शहरी नियोजन, कृषि विभाग, प्राविधिक शिक्षा, ग्राम्य विकास, दुग्ध विकास, उद्यान, चिकित्सा शिक्षा, वन विभाग, खादी व ग्रामोद्योग, उच्च शिक्षा, वाणिज्य कर, मनोरंजन कर व गृह विभाग में प्रदेश सरकार ने जनता की सुविधा के लिए इन विभागों में जनहित गारंटी अधिनियम 2011 लागू कर दिया है।
Wednesday, October 9, 2013
शिक्षा मित्र प्रशिक्षण
बीआरसी सल्टौआ पर चल रहे शिक्षामित्रों के द्वितीय बैच के द्वितीय
सेमेस्टर प्रशिक्षण के तीसरे दिन प्रशिक्षक अजय श्रीवास्तव ने वुड घोषणा
पत्र और प्रारंभिक शिक्षा के इतिहास पर विस्तार से जानकारी दिया। प्रशिक्षक
देवेंद्र मणि त्रिपाठी ने निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के प्रावधानों पर
विस्तार से जानकारी दी। शिक्षा का अधिकार कानून लागू हो जाने के बाद सभी
बच्चों को नि:शुल्क रूप से शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिल गया है।
मान्यता प्राप्त निजी विद्यालयों में भी 25 फीसदी छात्रों का नामांकन
नि:शुल्क करने का प्रावधान है। प्रशिक्षक संदेश रंजन ने प्रशासनिक अभिकरण
और सरकारी आदेशों के आदान-प्रदान और उसके पालन की विसतार से जानकारी दी।
प्रशिक्षक शिवकुमार ने सर्वशिक्षा अभियान की विभिन्न योजनाओं के संचालन की
विस्तार से जानकारी दी। प्रशिक्षण में 68 शिक्षामित्रों ने प्रतिभाग किया।
अमित श्रीवास्तव, दिलीप कुमार चौधरी, बाल गोपाल शुक्ल, सत्येन्द्र कुमार
आदि रहे।
जब धर्म ही मजाक बन जाये
धर्म में इतने अंधे मत बनो की धर्म ही मजाक बन जाये। भगवान् को हँसी का
पात्र मत बनाओ। ये एक विकृति है जिसे तिलक लगा के गणेश बना दिया और आप लोग
जय हो! जय हो! करने लगे। मुझ और आप जैसे साक्षर लोग ऐसी फोटोज पर अंधे होकर
कमेंट्स लिखते है। आज शंकर छाप
तम्बाकू पे भगवान् शिव का चित्र बना होता है, पाउच खाली होने पर सडको की
शोभा बढ़ाते है। शादी समारोह के निमंत्रण पत्रिकाओ पर भी तो भगवन गणेश और
राधा कृष्ण सुशोभित होते है, क्या आप वे कार्ड्स संभाल के रखते है?
अगरबत्ती के पकेट्स पर भी हमारे देवता विराजित है जिन्हें खाली होने पर
डस्टबिन के टूर पर भेज दिया जाता है। और हा लो अब तो दीवाली भी आ रही है अब
पठाखो के डिब्बे पर जो की खाली होने पर नालिओ में नज़र आयेंगे और माता
लक्ष्मी कस पूजन करके उन्ही के चीथड़े लक्ष्मी बम के रूप में उडाएँगे।
शर्म आती है मुझे क्या आप को भी आती है? या बेशर्मी का लाईसेंस ले लिया है।
बुरा लगे तो क्षमा करे और अच्छा लगे तो शेयर करे।
शर्म आती है मुझे क्या आप को भी आती है? या बेशर्मी का लाईसेंस ले लिया है।
बुरा लगे तो क्षमा करे और अच्छा लगे तो शेयर करे।
निरर्थक शिक्षा
कहते
हैं कि बुनियाद ही कमज़ोर हो तो फ़िर ईमारत की मजबूती हमेशा संदेह में रहती
है । देश में आज सबसे बुरी हालत प्राथमिक शिक्षा की है और शिक्षकों की भी ।
न तो विद्यालयों के पास समुचित भवन हैं , न ही पेय जल , पुस्तकालय , पाठय
सामग्री आदि बुनियादी सुविधाएं । ऊपर से शिक्षकों को पढाने के अतिरिक्त एक
जिम्मेदारी सरकार ने और सौंप दी है और वो है मध्याह्न भोजन की । शहरों में
तो खैर जैसे तैसे भोजन बनाने वाले भी मुहैय्या
करा दिए गए हैं किंतु गांवों के स्कूलों में जहां पहले से ही शिक्षकों की
भारी कमी है वहां उनमें से भी कुछ तो दोपहर भोजन योजना में ही लगे रहते हैं
। किंतु ऐसा नहीं है कि सारा दोष सिर्फ़ सरकार और प्रशासन का ही है ,
शिक्षा आज एक व्यवसाय का रूप ले चुकी है और स्कूल कालेज मुनाफ़ा कमाने वाले
कारोबार बन गए हैं । स्कूलों में किताबों से लेकर वर्दी तक जबरन बेचे जा
रहे हैं । हर तरह एक भागमभाग सी मची हुई है । ऐसे में कोई आदर्श शिक्षा और
शिक्षक की कल्पना भी कैसे कर सकता है ।
इन्हीं सबका परिणाम ये हुआ है कि आज न तो छात्रों के लिए कोई शिक्षक उनका आर्दश , उनका मार्गदर्शक गुरू और जीवनभर की प्रेरणा बन पाता है और न ही बनने को उत्सुक भी है । एक निर्धारित घिसे पिटे पैटर्न पर चल रही शिक्षा प्रणाली को उम्र भर खुद ढोता और छात्रों की पीठ पर लादता हुआ एक शिक्षक अब इस आस में कभी नहीं रहता कि उसका कोई छात्र कल होकर जब देश और समाज के निर्माण में कोई बडी सकारात्कम भूमिका निभाएगा तो खुद उस शिक्षक का दिया हुआ ज्ञान ही उसके मूल में होगा । शिक्षा और शिक्षकों को यदि अपनी गरिमा बनाए बचाए रखनी है तो उन्हें इस समाज में रहकर भी इनकी तमाम कुरीतियों और दुर्गुणों से खुद को बचाए रखकर शिक्षा के ध्येय के लिए साधना रत होना होगा ।
इन्हीं सबका परिणाम ये हुआ है कि आज न तो छात्रों के लिए कोई शिक्षक उनका आर्दश , उनका मार्गदर्शक गुरू और जीवनभर की प्रेरणा बन पाता है और न ही बनने को उत्सुक भी है । एक निर्धारित घिसे पिटे पैटर्न पर चल रही शिक्षा प्रणाली को उम्र भर खुद ढोता और छात्रों की पीठ पर लादता हुआ एक शिक्षक अब इस आस में कभी नहीं रहता कि उसका कोई छात्र कल होकर जब देश और समाज के निर्माण में कोई बडी सकारात्कम भूमिका निभाएगा तो खुद उस शिक्षक का दिया हुआ ज्ञान ही उसके मूल में होगा । शिक्षा और शिक्षकों को यदि अपनी गरिमा बनाए बचाए रखनी है तो उन्हें इस समाज में रहकर भी इनकी तमाम कुरीतियों और दुर्गुणों से खुद को बचाए रखकर शिक्षा के ध्येय के लिए साधना रत होना होगा ।
कैसा पाठ्यक्रम ?
बचपन
मेँ कभी सैनिक वीर अब्दुल हमीद की बहादुरी के किस्से स्कूल की किताबों मेँ
पढ़े थे। शायद उनके बाद कभी किसी सिलेबस का हिस्सा हमारे सैनिक नहीं रहे।
बर्फीले तूफानोँ मेँ हमारे सैनिक देश की सुरक्षा मेँ तैनात है। पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध और बाहरी आतँकवादियोँ से लड़ते हुए हमारे न जाने कितने सैनिक शहीद हुए। उनकी बहादुरी के किस्से मुझे कभी अपने स्कूली पाठ्यक्रम मेँ पढ़ने को नहीँ मिले। इस बात का अफसोस भी है।
बर्फीले तूफानोँ मेँ हमारे सैनिक देश की सुरक्षा मेँ तैनात है। पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध और बाहरी आतँकवादियोँ से लड़ते हुए हमारे न जाने कितने सैनिक शहीद हुए। उनकी बहादुरी के किस्से मुझे कभी अपने स्कूली पाठ्यक्रम मेँ पढ़ने को नहीँ मिले। इस बात का अफसोस भी है।
गुणग्राहकता
युग
बदलने से भी परिस्थितियां नहीं बदलतीं। तभी तो द्रोणाचार्य के मना करने के
बावजूद मिट्टी का द्रोणाचार्य बनाकर एकलव्य अपने ज्ञान का संधान करते-करते
नामी धनुर्धर बन जाता है। कर्ण अपनी पहचान छुपाकर परशुराम का प्रिय पात्र
बन उनसे सारे शस्त्रास्त्रों का संचालन सीख लेता है। इतिहास न जाने ऐसे
कितने उदाहरणों से भरा पड़ा है, जब शिष्य ने अपनी गुणग्राहकता के बल पर
अपना अभीष्ट हासिल कर लिया और बड़े से बड़े गुरु चाहकर भी अपने प्रिय को
सर्वोत्कृष्ट ज्ञान नहीं दे पाए।
ये भर्ती फॉर्मूला बन सकता है गले की फांस
ग्राम पंचायत अधिकारियों की भर्ती की चयन प्रक्रिया पंचायतीराज विभाग के जी का जंजाल बन सकती है।
विभाग ने साक्षात्कार और शैक्षिक अर्हता को लेकर जिस तरह की प्रक्रिया तय की है, उससे विभाग में ही चर्चा शुरू हो गई है कि इसे आज नहीं तो कल न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। इसका भी हश्र शिक्षक भर्ती जैसा हो सकता है।
विभाग ने साक्षात्कार और शैक्षिक अर्हता को लेकर जिस तरह की प्रक्रिया तय की है, उससे विभाग में ही चर्चा शुरू हो गई है कि इसे आज नहीं तो कल न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। इसका भी हश्र शिक्षक भर्ती जैसा हो सकता है।
पंचायतीराज विभाग ने ग्राम पंचायत अधिकारी पद पर भर्ती के लिए 50 नंबर शैक्षिक योग्यता व वेटेज के आधार पर जबकि 50 नंबर साक्षात्कार के लिए तय किया है।
इसके अंतर्गत इंटरमीडिएट में उत्तीर्ण श्रेणी के आधार पर अधिकतम 20 अंक दिए जाएंगे जबकि स्नातक होने पर अधिकतम 10 नंबर और जुड़ेंगे।
छटनीशुदा कर्मचारी होने पर वर्ष के अनुसार अधिकतम 15 नंबर मिलेगा तो खिलाड़ी के लिए उसके स्तर को देखते हुए अधिकतम 5 नंबर का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा 50 नंबर के साक्षात्कार के नंबर तीन मानक पर मिलेंगे।
पंचायतीराज विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि किसी भी 100 नंबर की चयन प्रणाली में यदि 50 नंबर का साक्षात्कार रख दिया जाता है तो उसे चुनौती दी जा सकती है।
वजह, यह नैसर्गिंक व्यवस्था के विरुद्ध है और पूर्व में लेखपालों की भर्ती में ऐसी ही व्यवस्था की वजह से प्रक्रिया बदल चुकी है। इसमें शैक्षिक योग्यता में अधिकतम नंबर पाने वाला इंटरव्यू में नाम मात्र का नंबर पाकर चयन प्रक्रिया से बाहर हो सकता है।
मतदाता पुन:निरीक्षण
बीटीसी
परीक्षा पास आने वाली है। स्कूल का समय भी 10 से 4 हो गया है। ऐसे में हम
शिक्षामित्र बीएलओ का कार्य कैसे कर पाएंगे। मैं तो शिक्षामित्रों की
बीएलओ की ड्यूटी का विरोध करता हूँ।
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पढ़ाई लिखाई के हिसाब से कला स्नातक और पेशे से शिक्षा मित्र हूँ।
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- जब धर्म ही मजाक बन जाये
- मंहगाई भत्ता 35 से 80 प्रतिशत के अवशेष देयकों के भ...
- निरर्थक शिक्षा
- कैसा पाठ्यक्रम ?
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- ये भर्ती फॉर्मूला बन सकता है गले की फांस
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